विश्व सनातन रक्षक
( पंजीकृत) 2384/2021
हमारी संस्था 10AC प्रमाणित है
VISHWA SANATAN RAKSHAK
IS CERTIFIED BY INCOME TAX DEPARTMENT GOVT.OF INDIA
80 G CERTIFICATE NUMBER AADTV5348RE20218
AND 12A CERTIFICATE NUMBER – AADTV5348RE2048
विश्व सनातन रक्षक का संकल्प
1. चोटी रखना
2.तिलक लगा कर चलना
3. हाथ में हमेशा कलाबा बांधना
4. गले मे तुलसी अथवा रुद्राक्ष की माला धारण करना
5. फरसा धारण करना
सदस्यता कैसे प्राप्त करें?
विश्व सनातन रक्षक की सदस्यता प्राप्त करने के लिए प्रतीक चिन्ह फरसा धारण करना आवश्यक है| फरसा धारण करने के लिये यह आवश्यक है कि आप सदैव चोटी, तिलक,माला, कलाबा, धारण करेंगे शपथ ग्रहण करेंगे कि फरसे का कभी दुरूपयोग नही करेंगे|
फरसे की अनुदान राशि केबल ट्रस्ट के बैंक खाते में जमा कराकर उसकी रसीद हमे 7289888818 पर व्हाट्सएप्प करें साथ मैं फार्म ,आधार कार्ड की कॉपी,एक पासपोर्ट साइज फ़ोटो भी भेजे
फरसा केबल आयोजित कार्यक्रम में ही प्रदान किया जाएगा
किसी भी स्थिति में इसे कूरियर अथवा पोस्ट से नही भेजा जाएगा
अनुदान राशि
फरसा आयरन शीट 3100/
फरसा एस एस 304 डायमंड स्टील 5100/-
Name of Beneficiary: Vishwa Sanatan Rakshak
Account Number : 201011657081
Bank Name : INDUSIND BANK
IFSC CODE : INDB0000383
BRANCH: Indirapuram, Ghaziabad UP
SWIFT CODE : INDUSIND BANK
Indian Arms Act 1959 Schedule 1 Rule 5
” Arms other than fire arms sharp edged and deadly weapons,namely swords ( including swords – sticks) daggers , bayonets,spears( including lances and javelins) battle axes,knives ,( including kirpans and shukriya) and other such weapons with blades longer than 9″ or wider than 2″ other than those designed for domestic ,agricultural,scientific or industrial purposes, steel baton,zipo and other such weapons called “life preservers” machinery for making arms other than category II; and any other arms which the Central Government may notify under section 4 .
विश्व सनातन रक्षक
भारतीय संभिधान 1959 सेक्शन 5 का पूरा ध्यान रखते हुए हमने फरसे की लंबाई 7.5 ” रखी है तथा ब्लेड की चौड़ाई केवल 1.9″ रखी है तथा भारतीय ट्रस्ट संभिधान के मुख्य उद्देश्य में इसे रजिस्ट्रार के द्वारा पास करा लिया गया है
अतः यह फरसा अपने पास रख कर पूरे भारत में लेकर चलना पूर्ण रूप से संबैधानिक है
अनिल कौशिक
राष्ट्रीय अध्यक्ष
विश्व सनातन रक्षक
हिंदू धर्म में 108 नंबर का महत्व
108 एक ऐसा अंक है जो हिन्दू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इसे शिव का अंक भी माना गया है। यही नहीं बौद्ध धर्म के अनुसार कहा गया है कि व्यक्ति के मन में कुल 108 प्रकार की भावनाएं पैदा होती हैं। रूद्राक्ष की माला हो या फिर मंत्रों का जाप, दोनों में एक चीज बेहद सामान्य है और वह है 108 का अंक।
हिन्दूधर्म में 108 के अंक का अपना एक अलग महत्व है। रुद्राक्ष की माला में 108 मनके होते हैं, मंत्रों का जाप 108 बार किया जाता है। ईश्वर का नाम लेना हो तो उसे भी तभी शुभ और संपूर्ण माना जाता है जब वह 108 बार लिया जाए।
वैसे 108 अंक की प्रमुखता, उसकी महत्ता और प्रभाव ना सिर्फ हिन्दू धर्म में देखा जाता है बल्कि अन्य धर्मों में भी इसे स्वीकार किया गया है। चलिए जानते हैं इस 108 अंक के पीछे कारण क्या है।
1.) मुख्य शिवांगों की संख्या 108 होती है इसलिए सभी शैव संप्रदाय, विशेषकर लिंगायत संप्रदाय में रुद्राक्ष की माला में 108 मनकों का जाप होता है। इसके अलावा वे रोजाना सुबह शिव के अष्टशतनामवली’ का जाप भी करते हैं।
2.) यहूदी लोग जब भी कभी दान करते हैं या फिर चंदा देते हैं 18 से गुणा करके ही देते हैं, जिसका संबंध हिब्रू भाषा में चाइ अर्थात, जीवन या जीवित से है। 108 अंक भी 18 से गुणा होता है और इस अंक में 1 और 8 दोनों ही संख्याएं हैं। ईसाईधर्म की पुस्तक के पहले खंड, जिनीसेस में उल्लिखित है कि इसाक की मौत 108 वर्ष की उम्र में हुई थी।
3.) तिब्बत के बौद्धधर्म में भी जापमालाओं में 108 मनके ही होते हैं, लेकिन कभी कभार ‘गुरु’ मनकों को मिलाकर इनकी संख्या 11 भी होती है। ज़ेन धर्म से संबंधित धर्मगुरु और अनुयायी अपनी कलाई पर जापमाला बांधते हैं उनकी संख्या भी 108 ही होती है।
4.) गौड़ीय वैष्णव धर्म में भी वृंदावन में 108 गोपियों का जिक्र किया गया है। 108 मनकों के साथ-साथ सभी गोपियों के नामों का जाप, जिसे नामजाप कहते हैं, पवित्र और शुभ माना जाता है। श्रीवैष्णव धर्म में विष्णु के 108 दिव्य क्षेत्रों को बताया गया है जिन्हें ‘108 दिव्यदेशम’ कहा जाता है।
5.) जापानी संस्कृति में बौद्ध धर्म के अनुयायी बीतते साल को अलविदा कहने और नव वर्ष के आगमन के लिए मंदिर की घंटियों को 108 बार बजाते हैं। प्रत्येक घंटी 108 में से एक सांसारिक प्रलोभन का प्रतिनिधित्व करती है, जिसे त्यागकर व्यक्ति को निर्वाण के मार्ग पर चलना चाहिए।
6.) वहीं एक्युप्रेशर के अनुसार भी शरीर में 108 प्रकार के प्रेशर प्वॉइंट्स होते हैं। जहां चेतना और देह मिलकर जीवन का सृजन करते हैं।
7.) हिन्दूधर्म से संबंधित कम्बोडिया के प्रसिद्ध अंगकोरवाट मंदिर की प्रख्यात नक्काशी में भी समुद्र मंथन की घटना को दर्शाया गया है जब क्षीर सागर पर मंदार पर्वत पर बंधे वासुकि नाग को 54 देव और 54 राक्षस (108) अपनी-अपनी ओर खींच रहे थे।
8.) लंकावत्र सूत्र में भी एक खंड है जिसमें बोधिसत्व महामती, बुद्ध से 108 सवाल पूछते हैं। एक अन्य खंड में बौद्ध 108 निषेधों को भी बताते हैं। बहुत से बौद्ध मंदिरों में सीढ़ियां भी 108 रखी गई हैं।
हमारे देश के 3 नाम कैसे हुए हैं ? जाने
भारत – भारत का नाम पौराणिक राजा भरत से लिया गया है| इनका साम्राज्य कश्मीर से कन्याकुमारी तक फैला हुआ था।
हिंदुस्तान – व्यापार के लिए जब ईरानी भारत आए तब भारत को सिंधु नाम से जाना जाता था| लेकिन ईरानियों को सिंधु शब्द उच्चारण करने में तकलीफ होती थी| वह सिंधु को हिंदू कहने लगे, कुछ समय बाद हिंद, हिंदुस्तान में परिवर्तन हुआ और देश का नाम हिंदुस्तान हो गया।
इंडिया – सिंधु नदी को इंडस के नाम से भी जाना जाता है | सिंधु घाटी की सभ्यता रोम की सभ्यता की तरह प्रसिद्धि थी और पूरे देश में पैदा हुई थी| इंडस वैली के कारण ही देश का नाम इंडिया पड़ा| इंडिया का नाम विश्व स्तर पर अंग्रेज शासन के दौरान सबसे अधिक प्रसिद्ध हुआ है, जो आज ही प्रसिद्ध है।
अब हम सनातन धर्म रक्षक चाहते हैं कि हमारे देश का नाम सिर्फ और सिर्फ भारत रहे क्योंकि 1947 में हमारे देश का बंटवारा धर्म तथा जनसंख्या के आधार पर हो गया था और पाकिस्तान बन गया तो मुगलो द्वारा दिया गया नाम हिन्दोस्तान खत्म हो गया
देश के बंटवारे के साथ ही अंग्रेज भी चले गए तो इंडिया नाम भी चला गया
अतः अब हमारे देश का नाम विश्व के नक्शे पर सिर्फ ओर सिर्फ भारत होना चाहिए
अनिल कौशिक
अध्यक्ष
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अनिल कौशिक
राष्ट्रीय अध्यक्ष
विश्व सनातन रक्षक
274-ए, ब्लॉक-एच, सेक्टर-12
प्रताप विहार, ग़ज़ियाबाद
उ.प्र. 201009 भारत
मोबाइल ; 91-7289888818
ई मेल : vsrakshak@gmail.com
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अनुदान हेतु
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Account Number : 201011657081
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